ट्रंप के फैसले से मची आर्थिक हलचल: रुपया गिरा, बाजारों में भूचाल
दुनिया में फिर आर्थिक संकट की आहट?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने के फैसले से वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल मच गई है। इसका असर एशियाई बाजारों में साफ देखा जा सकता है, जहां भारी गिरावट दर्ज की गई। इस फैसले के कारण भारतीय रुपया भी दबाव में आ गया और 7 अप्रैल को 50 पैसे की गिरावट के साथ खुला। डॉलर के मुकाबले रुपया 85.7450 के स्तर पर पहुंच गया, जबकि पिछले सत्र में यह 85.2350 पर बंद हुआ था।
रुपये में गिरावट का कारण क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की यह कमजोरी मुख्य रूप से ट्रंप प्रशासन की अप्रत्याशित नीतियों और वैश्विक व्यापार पर लगाए गए टैरिफ की वजह से आई है। फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी हेड और कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भसाली का कहना है कि “यह गिरावट बाजार की अनिश्चितता और जोखिम से बचने की भावना के कारण हुई है। ट्रंप प्रशासन द्वारा बिना किसी चर्चा और उचित कारण के टैरिफ लगाना दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर रहा है।”
क्या यह निर्यातकों के लिए मौका है?
भसाली का कहना है कि यह गिरावट निर्यातकों के लिए एक अवसर भी बन सकती है। डॉलर और रुपये की जोड़ी अस्थिर बनी हुई है और अगर ट्रंप के बयान बदलते रहे, तो निर्यातकों को अपनी रणनीति में तेजी लाने का मौका मिल सकता है। 4 अप्रैल को रुपये में बढ़त देखने को मिली थी, लेकिन इस नई गिरावट ने फिर चिंता बढ़ा दी है।
बाजार और निवेशकों पर क्या असर पड़ेगा?
इंडिया फॉरेक्स एंड एसेट मैनेजमेंट (IFA ग्लोबल) के संस्थापक और सीईओ अभिषेक गोयनका के अनुसार, “ऑफशोर बाजारों में रुपये की कमजोरी बनी हुई है। 7 अप्रैल की सुबह NDF (नॉन-डिलीवरेबल फॉरवर्ड) मार्केट में रुपये ने 85.75 का स्तर छू लिया था। दिन के अंत तक यह 85.75-85.60-86 के दायरे में कारोबार कर सकता है।”
इसका सीधा असर भारतीय शेयर बाजार और निवेशकों की भावनाओं पर भी पड़ा है। विदेशी निवेशक बाजार से हाथ खींच सकते हैं, जिससे इक्विटी बाजार में और गिरावट देखने को मिल सकती है।
आगे क्या हो सकता है?
- रुपये की स्थिति: अगर वैश्विक अनिश्चितता बनी रहती है, तो रुपया और कमजोर हो सकता है। विशेषज्ञ 86 का स्तर छूने की संभावना जता रहे हैं।
- शेयर बाजार में उथल-पुथल: विदेशी निवेशकों की बिकवाली जारी रही तो भारतीय शेयर बाजार में और गिरावट आ सकती है।
- सरकार की भूमिका: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये को स्थिर करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है।
- निर्यातकों और व्यापारियों के लिए रणनीति: निर्यातकों को डॉलर के उतार-चढ़ाव पर नजर रखनी होगी और अपनी रणनीति उसी के अनुसार बनानी होगी।
निष्कर्ष
ट्रंप के टैरिफ फैसले ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता ला दी है। भारतीय रुपया और शेयर बाजार इससे प्रभावित हुए हैं, और आगे भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। निवेशकों और व्यापारियों को सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि भविष्य में डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति और खराब हो सकती है।
क्या ट्रंप की नीतियां भारत के लिए संकट लेकर आएंगी या इसमें नए अवसर छिपे हैं? आपकी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं!